Tuesday, February 12, 2019

दोहापुरम् ~ 9

मिट्टी को सोना करें, नव्य सृजन में दक्ष।
कुम्भकार के हाथ हैं, ईश्वर के समकक्ष।।

बता रही थी ज़िन्दगी, बाँच कर्म का पाठ।
मेहनतकश की मौज़ है, मेहनतकश के ठाट।।

ख़ुशियों के पल अनगिनत, सुख की ठंडी छाँव।
झरबेरी-सा झर रहा, मेरे मन का गाँव।।

उनकी फ़ितरत सूर्य-सी, चमक रहे हैं नित्य।
मेरी फ़ितरत चाँद-सी, ढूँढ़ रहे आदित्य।।

कुंठित सोच-विचार जब, हुआ काव्य में लिप्त।
शब्द अपाहिज हो गए, अर्थ हुए संक्षिप्त।।

~ अमन चाँदपुरी