नव कलियाँ मुस्का रहीं, मन में लिए उमंग।
इनके सम्मुख तुच्छ हैं, इन्द्रधनुष के रंग।।
अभी पीर ही दे रही, किन्तु न जाए लील।
गड़ी हमारी सोच में, जातिवाद की कील।।
सिर्फ़ नज़रिए ने किया, ऐसा अजब कमाल।
मातृभूमि की धूल से, हुआ सुशोभित भाल।।
निकट मृत्यु को देखकर, हुआ हमें अहसास।
तन भी तो अपना नहीं, फिर क्या अपने पास।।
नदिया को देकर दिशा, मिली उसी को पीर।
तट प्यासा व्याकुल 'अमन', ढूँढ रहा है नीर।।
इनके सम्मुख तुच्छ हैं, इन्द्रधनुष के रंग।।
अभी पीर ही दे रही, किन्तु न जाए लील।
गड़ी हमारी सोच में, जातिवाद की कील।।
सिर्फ़ नज़रिए ने किया, ऐसा अजब कमाल।
मातृभूमि की धूल से, हुआ सुशोभित भाल।।
निकट मृत्यु को देखकर, हुआ हमें अहसास।
तन भी तो अपना नहीं, फिर क्या अपने पास।।
नदिया को देकर दिशा, मिली उसी को पीर।
तट प्यासा व्याकुल 'अमन', ढूँढ रहा है नीर।।