Tuesday, September 11, 2018

दोहापुरम् ~ 3

उगा पूर्व के पेड़ पर, सुर्ख लाल-सा फूल।
जिसकी आभा से हुई, रौशन सृष्टि समूल

धधक रहा था यह हृदय, भभक उठा था प्यार।
तन की भट्टी में जला, सपनों का संसार।।

आग लगाती धूप हो, या फिर शीतल छाँव।
मंजिल से पहले मगर, नहीं रुकेंगे पाँव।।

अलग-अलग हैं रास्ते, अलग-अलग गन्तव्य।
उनका कुछ मंतव्य है, मेरा कुछ मंतव्य।।

सुख-दुख में रहता 'अमन', सदा विरोधाभास।
सुख का सीमित क्षेत्र है, दुख का विस्तृत व्यास।।

~ अमन चाँदपुरी


1 comment:

  1. सुन्दर दोहे चांदपुरी जी

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