Tuesday, September 4, 2018

दोहापुरम् ~ 1

अज़ब यहाँ की सभ्यता, अजब यहाँ के लोग।
निर्धन मरता भूख से, प्रभु को चढ़ता भोग।।

घूंघट में कब तक रहे, आख़िर घर की लाज।
आँगन तक उड़ आ गया, यह पश्चिम का बाज़।

ख़ुद ही कर अपनी परख, ख़ुद ही ख़ुद को माप।
कितने तेरे पुण्य हैं, कितने तेरे पाप।।

सृष्टि समूची चीख़ती, धरा बनी रण क्षेत्र।
नीलकंठ अब खोलिए, वही तीसरा नेत्र।।

सुख चुल्लू भर भी नहीं, दुख की नदी विशाल।
थोड़े सुख से सुख मिले, यह भी एक कमाल।।

~ अमन चाँदपुरी

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