नृत्य कर रही चाक पर, मन में लिए उमंग।
है कुम्हार घर आज फिर, मिट्टी का सत्संग।।
मौसम यह कैसा हुआ, कैसी चली बयार।
शेर सभी गीदड़ हुए, गधे रहे ललकार।।
अपनों ने लूटा मुझे, जिस दिन रचकर स्वाँग।
सिद्धांतों की पोटली, खूँटी पर दी टाँग।।
उसके चेहरे में छुपा, शायद कोई नूर।
जब होती है साथ वह, तमस भागता दूर।।
मुँह पर कसी लगाम है, शब्दों पर जंजीर।
व्याकुलता इतनी बढ़ी, ज़िन्दा हुआ कबीर।।
है कुम्हार घर आज फिर, मिट्टी का सत्संग।।
मौसम यह कैसा हुआ, कैसी चली बयार।
शेर सभी गीदड़ हुए, गधे रहे ललकार।।
अपनों ने लूटा मुझे, जिस दिन रचकर स्वाँग।
सिद्धांतों की पोटली, खूँटी पर दी टाँग।।
उसके चेहरे में छुपा, शायद कोई नूर।
जब होती है साथ वह, तमस भागता दूर।।
मुँह पर कसी लगाम है, शब्दों पर जंजीर।
व्याकुलता इतनी बढ़ी, ज़िन्दा हुआ कबीर।।
No comments:
Post a Comment