पलकें ढोतीं कब तलक, भला नींद का भार।
आँखों ने थक हारकर, डाल दिये हथियार।।
तुम बादल-जैसी सखी! मुझे रेत-सी आस।
कुछ बूँदें मुझ पर पड़ें, मिटे युगों की प्यास।।
पल भर में लेते निगल, 'अमन' प्रगति की भोर।
मुँह फैलाए हैं पड़े, अजगर चारों ओर।।
अमृत सबको चाहिए, कौन करे विषपान।
'नीलकंठ' होना कठिन, 'देव' बहुत आसान।।
अधरों पर ताले पडे़, प्रतिबंधित संवाद।
हमने हर दुख का किया, कविता में अनुवाद।।
आँखों ने थक हारकर, डाल दिये हथियार।।
तुम बादल-जैसी सखी! मुझे रेत-सी आस।
कुछ बूँदें मुझ पर पड़ें, मिटे युगों की प्यास।।
पल भर में लेते निगल, 'अमन' प्रगति की भोर।
मुँह फैलाए हैं पड़े, अजगर चारों ओर।।
अमृत सबको चाहिए, कौन करे विषपान।
'नीलकंठ' होना कठिन, 'देव' बहुत आसान।।
अधरों पर ताले पडे़, प्रतिबंधित संवाद।
हमने हर दुख का किया, कविता में अनुवाद।।
वाह...सुन्दर दोहे।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
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