Sunday, September 16, 2018

दोहापुरम् ~ 4

भोर हुई तो सूर्य ने, फैलाया परिधान।
धरती स्वर्णिम हो गई, चहक उठा इंसान।।

आम जनों की पीर की, दबी रही आवाज़।
या कहते शायर इसे, या कहते कविराज़।।

तोप, तमंचे, गोलियाँ, सब कुछ हैं बेकार।
चिंतन जिसके पास है, बनता सिरजनहार।

काँटे चुभे गुलाब के, तभी सका यह जान।
मंजिल से पहले बहुत, आते हैं व्यवधान।।

यौवन के सोलह बरस, फूले हरसिंगार।
फिरती होकर बावरी, गोरी बाँह पसार।।

~ अमन चाँदपुरी


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