Saturday, September 29, 2018

दोहापुरम् ~ 8

नव कलियाँ मुस्का रहीं, मन में लिए उमंग।
इनके सम्मुख तुच्छ हैं, इन्द्रधनुष के रंग।।

अभी पीर ही दे रही, किन्तु न जाए लील।
गड़ी हमारी सोच में, जातिवाद की कील।।

सिर्फ़ नज़रिए ने किया, ऐसा अजब कमाल।
मातृभूमि की धूल से, हुआ सुशोभित भाल।।

निकट मृत्यु को देखकर, हुआ हमें अहसास।
तन भी तो अपना नहीं, फिर क्या अपने पास।।

नदिया को देकर दिशा, मिली उसी को पीर।
तट प्यासा व्याकुल 'अमन', ढूँढ रहा है नीर।।

~ अमन चाँदपुरी

Wednesday, September 26, 2018

दोहापुरम् ~ 7

दोहा कब किस दौर में, पड़ा ज़रा भी नर्म।
मानव का कल्याण ही, इसका सच्चा मर्म।।

प्रेम किया तो फिर सखे! पूजा-पाठ फ़िज़ूल।
ढाई अाखर में निहित, सकल सृष्टि का मूल।।

दूषित था, किसने सुनी, उसके मन की पीर।
प्यास-प्यास रटते हुए, मरा कुएँ का नीर।।

सुख के दीपक जल रहे, मिटता दुख अंधेर।
दुख आँधी बन दीप को, आँखें रहा तरेर।।

ज्ञानी जन संग बैठकर, जुटा लिया कुछ ज्ञान।
पर सम्मुख हैं आपके, हम अब भी नादान।।

~ अमन चाँदपुरी

Thursday, September 20, 2018

दोहापुरम् ~ 6

भोर हुई तो चाँद ने, पकड़ी अपनी बाट।
पूर्व दिशा के तख़्त पर, बैठे रवि-सम्राट।।

बीत गए इतने दिवस, बीते इतने साल।
यादें पावन प्रीत की, यूँ ही रखो सँभाल।।

प्रेम हमेशा जीतता, यदि है प्रेम पवित्र।
राधा बिना अपूर्ण है, कान्हा का हर चित्र।।

दिल में तो कुछ और है, अधर कहें कुछ और।
हाव-भाव पर आप ही, ज़रा कीजिए ग़ौर।।

शहर गए बच्चे सभी, सूनी है चौपाल।
दादा-दादी मौन हैं, कौन पूछता हाल?

~ अमन चाँदपुरी

Wednesday, September 19, 2018

दोहापुरम् ~ 5

नृत्य कर रही चाक पर, मन में लिए उमंग।
है कुम्हार घर आज फिर, मिट्टी का सत्संग।।

मौसम यह कैसा हुआ, कैसी चली बयार।
शेर सभी गीदड़ हुए, गधे रहे ललकार।।

अपनों ने लूटा मुझे, जिस दिन रचकर स्वाँग।
सिद्धांतों की पोटली, खूँटी पर दी टाँग।।

उसके चेहरे में छुपा, शायद कोई नूर।
जब होती है साथ वह, तमस भागता दूर।।

मुँह पर कसी लगाम है, शब्दों पर जंजीर।
व्याकुलता इतनी बढ़ी, ज़िन्दा हुआ कबीर।।

~ अमन चाँदपुरी


Sunday, September 16, 2018

दोहापुरम् ~ 4

भोर हुई तो सूर्य ने, फैलाया परिधान।
धरती स्वर्णिम हो गई, चहक उठा इंसान।।

आम जनों की पीर की, दबी रही आवाज़।
या कहते शायर इसे, या कहते कविराज़।।

तोप, तमंचे, गोलियाँ, सब कुछ हैं बेकार।
चिंतन जिसके पास है, बनता सिरजनहार।

काँटे चुभे गुलाब के, तभी सका यह जान।
मंजिल से पहले बहुत, आते हैं व्यवधान।।

यौवन के सोलह बरस, फूले हरसिंगार।
फिरती होकर बावरी, गोरी बाँह पसार।।

~ अमन चाँदपुरी


Tuesday, September 11, 2018

दोहापुरम् ~ 3

उगा पूर्व के पेड़ पर, सुर्ख लाल-सा फूल।
जिसकी आभा से हुई, रौशन सृष्टि समूल

धधक रहा था यह हृदय, भभक उठा था प्यार।
तन की भट्टी में जला, सपनों का संसार।।

आग लगाती धूप हो, या फिर शीतल छाँव।
मंजिल से पहले मगर, नहीं रुकेंगे पाँव।।

अलग-अलग हैं रास्ते, अलग-अलग गन्तव्य।
उनका कुछ मंतव्य है, मेरा कुछ मंतव्य।।

सुख-दुख में रहता 'अमन', सदा विरोधाभास।
सुख का सीमित क्षेत्र है, दुख का विस्तृत व्यास।।

~ अमन चाँदपुरी


Friday, September 7, 2018

दोहापुरम् ~ 2

पलकें ढोतीं कब तलक, भला नींद का भार।
आँखों ने थक हारकर, डाल दिये हथियार।।

तुम बादल-जैसी सखी! मुझे रेत-सी आस।
कुछ बूँदें मुझ पर पड़ें, मिटे युगों की प्यास।।

पल भर में लेते निगल, 'अमन' प्रगति की भोर।
मुँह फैलाए हैं पड़े, अजगर चारों  ओर।।

अमृत सबको चाहिए, कौन करे विषपान।
'नीलकंठ' होना कठिन, 'देव' बहुत आसान।।

अधरों पर ताले पडे़, प्रतिबंधित संवाद।
हमने हर दुख का किया, कविता में अनुवाद।।

- अमन चाँदपुरी


Tuesday, September 4, 2018

दोहापुरम् ~ 1

अज़ब यहाँ की सभ्यता, अजब यहाँ के लोग।
निर्धन मरता भूख से, प्रभु को चढ़ता भोग।।

घूंघट में कब तक रहे, आख़िर घर की लाज।
आँगन तक उड़ आ गया, यह पश्चिम का बाज़।

ख़ुद ही कर अपनी परख, ख़ुद ही ख़ुद को माप।
कितने तेरे पुण्य हैं, कितने तेरे पाप।।

सृष्टि समूची चीख़ती, धरा बनी रण क्षेत्र।
नीलकंठ अब खोलिए, वही तीसरा नेत्र।।

सुख चुल्लू भर भी नहीं, दुख की नदी विशाल।
थोड़े सुख से सुख मिले, यह भी एक कमाल।।

~ अमन चाँदपुरी